RBI के पूर्व गवर्नर डी. सुब्बाराव ने GDP में 50 bps गिरावट का अनुमान लगाया, चीन और टैरिफ को वजह बताया

नई दिल्ली

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर ने भारत की जीडीपी को लेकर बड़ी चेतावनी दी है. उनका कहना है कि डोनाल्‍ड ट्रंप (Donald Trump) द्वारा भारतीय एक्‍सपोर्ट पर 50 फीसदी टैरिफ से GDP ग्रोथ रेट में 50 बेसिस पॉइंट की गिरावट आ सकती है. साथ ही भारत में बेरोजगारी का संकट और गहरा सकता है. इतना ही नहीं चीन के जवाबी व्‍यापारिक कदमों से भारत के मैन्‍युफैक्‍चरिंग सेक्‍टर पर और दबाव पड़ सकता है. 

RBI के पूर्व गवर्नर दुव्‍वारी सुब्‍बाराव ने  इंटरव्‍यू में भारत की इकोनॉमी को लेकर चेतावनी दी है. सुब्बाराव ने कहा कि अमेरिका से टैरिफ का खतरा कपड़ा, जूते और ज्‍वेलरी जैसे क्षेत्रों पर ज्‍यादा होगा. यह टैरिफ भारत के GDP का करीब 2 फीसदी वैल्‍यू एक्‍सपोर्ट को सीधे तौर पर खतरे में डालता है. 

सुब्‍बाराव ने कहा कि टैरिफ से मार्जिन कम हो जाएगा, ऑर्डर डायवर्ट हो जाएंगे, नौकरियां खत्म हो जाएंगी और कारखानों का आकार छोटा हो जाएगा. उन्होंने विकास दर में 20-50 आधार अंकों की संभावित गिरावट का अनुमान लगाया, जो इस बात पर निर्भर करेगा कि भारत इस झटके को कितनी अच्छी तरह झेलता है या डायवर्ट करता है. डी सुब्‍बाराव ने आगे कहा कि व्‍यापार प्रभाव कम होगा, आय में असमानता बढ़ेगी और भारत के पहले से ही कमजोर औपचारिक रोजगार नजरिए पर अतिरिक्‍त दबाव डालेगा. 

चीन से जोखिम की ओर इशारा
पूर्व गवर्नर ने कहा कि बीजिंग पर वाशिंगटन से टैरिफ का दबाव है, इसलिए चीनी एक्‍सपोर्टर अतिरिक्त स्टॉक को बेचने के लिए भारत जैसे बाजारों में सस्ते सामानों की बाढ़ ला सकते हैं. उन्होंने चेतावनी दी कि हमें इस बात पर फोकस रखना चाहिए कि चीन अमेरिकी बाजार में अपनी हिस्सेदारी के नुकसान की भरपाई के लिए हमारे बाजारों में डंपिंग कर सकता है.

उन्‍होंने कहा कि यह अमेरिकी टैरिफ और चीनी डंपिंग का दोहरा दबाव भारत के मैन्‍युफैक्‍चरिंग को रोक सकता है. ठीक उसी समय जब वह चीन+1 रणनीति के तहत ग्‍लोबल स्‍तर पर सबसे ऊपर पहुंचना चाहता है. 

डेड इकोनॉमी पर क्‍या बोले पूर्व गवर्नर
सुब्‍बाराव ने ट्रंप के डेड इकोनॉमी वाले बयान पर भी अपनी राय रखी. उन्‍होंने कहा कि ट्रंप का ये बयान भारत के लिए गलत है, लेकिन इससे रिस्‍क बढ़ सकता है. ग्‍लोबल स्‍तर पर निवेशकों की भावना प्रभावित हो सकती है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वैश्विक स्तर पर तरलता कम होने और उधार लेने की लागत बढ़ने के कारण भारत को कमजोर क्षेत्रों को बचाना होगा. निवेशकों का विश्वास और व्यापक आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए संरचनात्मक सुधारों में तेजी लानी होगी.

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