इकोनॉमी पर संकट के बादल: मिडिल क्लास की जेब खाली होने की चेतावनी

नई दिल्ली
क्या मिडिल क्साल (Middle Class) कम खर्च कर रहा है? क्या उनके पास पैसा खत्म हो रहा है? ये हम नहीं कह रहे, बल्कि एक्सपर्ट कुछ ऐसी ही चेतावनी दे रहे हैं. मार्सेलस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के सौरभ मुखर्जी ने एक लंबे चौड़े ब्लॉग में बताया कि भारतीय कॉर्पोरेट मुनाफा लड़खड़ा रहा है और इस संकट में अहम रोल मध्यम वर्ग निभा रहा है. उन्होंने कहा कि दिवाली (Diwali) 2023 के बाद से ही भारतीय कंपनियों की इनकम ग्रोथ में भारी गिरावट दर्ज की गई है, जिसका बड़ा कारण खपत में आई कमी है और इसकी वजह यह है कि मध्यम वर्ग के भारतीयों के पास पैसे खत्म हो रहे हैं.
भारत का कॉर्पोरेट मुनाफ़ा लड़खड़ा रहा है और इस संकट की जड़ में मध्यम वर्ग हो सकता है।मार्सेलस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के ने एक ब्लॉग में चेतावनी दी है कि सफेदपोश रोज़गार सृजन में गिरावट, वास्तविक मज़दूरी में कमी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का उदय, उस मध्यम वर्ग के इंजन को कमज़ोर कर रहे हैं जिसने लंबे समय से भारत की विकास गाथा को गति दी है।
दिवाली 2023 के बाद से, भारतीय कंपनियों की आय वृद्धि में भारी गिरावट आई है, जिसकी वजह खपत में गिरावट है। इसकी वजह यह है कि मध्यम वर्ग के भारतीयों के पास पैसे खत्म हो रहे हैं। आरबीआई के आंकड़े बताते हैं कि वित्त वर्ष 2024 में जीडीपी के हिस्से के रूप में घरेलू बचत 50 साल के निचले स्तर पर आ गई है, जो आखिरी बार 1977 में देखा गया था। वे लिखते हैं, "होली 2024 तक, मध्यम वर्ग की ऊर्जा खत्म हो चुकी होगी।"
मंदी हर जगह दिखाई दे रही है। खपत, जो सकल घरेलू उत्पाद का 60% हिस्सा है, 2021-23 के "बदला लेने वाले खर्च" के दौर के खत्म होने के बाद से कम हो गई है। एसयूवी, आवास और यात्रा में कभी उछाल आया था; अब मांग कम हो रही है। कॉर्पोरेट आय भी इसी राह पर चल रही है — निफ्टी कंपनियों ने वित्त वर्ष 2025 में सबसे तेज़ गिरावट दर्ज की है।
नौकरियाँ एक और भी भयावह कहानी बयां करती हैं। 2020 से पहले एक दशक तक, सफेदपोश नौकरियाँ हर छह साल में दोगुनी होती थीं। वित्त वर्ष 2020 से, यह वृद्धि दर घटकर केवल 3% वार्षिक रह गई है – यानी अब नौकरियों को दोगुना होने में 24 साल लगेंगे। मध्यम वर्ग के रोज़गार की रीढ़, आईटी, सॉफ्टवेयर और रिटेल, स्थिर हो गए हैं।
स्वचालन इस गिरावट को और तेज़ कर रहा है। मुखर्जी बताते हैं कि कैसे भारतीय आईटी दिग्गज खुलेआम कर्मचारियों की संख्या में कटौती कर रहे हैं। टीसीएस के सीईओ के. कृतिवासन ने कहा कि जुलाई 2025 में एआई के विस्तार के साथ कंपनी अपने कर्मचारियों की संख्या में 2% (लगभग 12,000 नौकरियाँ) की कटौती करेगी। एचसीएल टेक के सी. विजयकुमार ने आगे कहा कि लक्ष्य "आधे कार्यबल के साथ राजस्व को दोगुना करना" है।
आय में कमी भी उतनी ही चिंताजनक है। निफ्टी 50 कंपनियों पर मार्सेलस के विश्लेषण से पता चलता है कि पिछले आठ सालों में, कर्मचारियों का औसत वेतन मुद्रास्फीति के साथ तालमेल बिठाने में विफल रहा है। 2016 से पहले के दौर के विपरीत, जब वेतन कम से कम बढ़ती लागत के बराबर होता था, आज के सफेदपोश कर्मचारी वास्तविक रूप से गरीब हैं।
भारत के 4 करोड़ सफेदपोश कमाई करने वालों के लिए — जो अपने खर्च से लगभग 20 करोड़ नौकरियों का सृजन करते हैं — यह एक ख़तरे की घंटी है। मुखर्जी चेतावनी देते हैं कि जब तक वेतन और रोज़गार सृजन में सुधार नहीं होता, भारत में मध्यम वर्ग की लंबे समय तक तंगी बनी रहेगी, जिससे उसकी आर्थिक गति पर असर पड़ सकता है।
मिडिल क्लास के इंजन को रोक रहे 3 कारण
सौरभ मुखर्जी के मुताबिक, इस संकट के पीछे तीन बड़े कारणों को बताया है और कहा है कि सफेदपोश रोजगार के अवसरों में गिरावट, वास्तविक मजदूरी में कमी और एआई का बढ़ता दायरा, मध्यम वर्ग के इंजन को कमजोर करने में अहम रोल निभा रहे हैं, जिससे लॉन्गटर्म से भारत के डेवलपमेंट को तेजी मिली है. उन्होंने अपने ब्लॉग में कहा कि कंपनियों की खपत घट रही है, क्योंकि मिडिल क्लास भारतीयों के पास पैसे खत्म हो रहे हैं.
घरेलू बचत 5 दशक में सबसे कम
मुखर्जी ने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि वित्त वर्ष 2024 में जीडीपी (GDP) के हिस्से के रूप में घरेलू बचत 50 साल के निचले स्तर पर आ गई है, जो आखिरी बार 1977 में देखने को मिली थी. उन्होंने आगे कहा कि मंदी (Recession) हर जगह दिखाई दे रही है. खपत, जो जीडीपी का 60% हिस्सा है, 2021-23 के के बाद से कम हो गई है. बात SUV की हो या फिर घर या ट्रैवल की, जिनमें कभी तेज उछाल दिख रहा था, इनकी डिमांड अब कम हो रही है. कॉर्पोरेट इनकम भी इसी ट्रैक पर चल रही है और निफ्टी पर लिस्टेड कंपनियों ने FY25 में सबसे तेज गिरावट दर्ज की है.
नौकरियों में कमी से बढ़ी मुसीबत
अगला कारण विस्तार से बताते हुए सौरभ मुखर्जी ने कहा कि नौकरियां एक और भी भयावह कहानी बयां करती हैं. आंकड़े देखें, तो साल 2020 से पहले एक दशक तक, सफेदपोश नौकरियां हर छह साल में दोगुनी होती थीं, लेकिन FY20 से ही यह ग्रोथ रेट कम होकर सालाना सिर्फ तीन फीसदी रह गया. इसका मतलब है कि अब नौकरियों को दोगुना होने में 24 साल लगेंगे. मिडिल क्लास की रीढ़ माने जाने रोजगार आईटी, सॉफ्टवेयर और रिटेल स्थिर से नजर आ रहे हैं.
उन्होंने ऑटोमेशन को इस गिरावट में तेजी का बड़ा कारण बताया है. AI के विस्तार के साइड इफेक्ट को बताने के लिए उन्होंने टाटा ग्रुप की कंपनी टीसीएस का उदाहरण दिया और बताया कि TCS CEO के. कृतिवासन ने जुलाई 2025 में एआई ग्रोथ के साथ कंपनी अपने कर्मचारियों की संख्या में 2% (लगभग 12,000 नौकरियों) की कटौती की बात कही है.
कंपनियों की कमाई घटना चिंताजनक
कंपनियों की इनकम में कमी को भी मुखर्जी उतना ही चिंताजनक करार दे रहे हैं, जितना कि बाकी कारण हैं. उन्होंने कहा कि Nifty-50 कंपनियों पर विश्लेषण से पता चलता है कि बीते 8 सालों में, कर्मचारियों का औसत वेतन महंगाई के साथ तालमेल बिठाने में विफल रहा है. 2016 से पहले के सालों में जब वेतन कम से कम बढ़ती लागत के बराबर होता था, उस दौर की तुलना में आज के सफेदपोश कर्मचारी वास्तविक रूप से गरीब नजर आ रहे हैं.
मुखर्जी का कहना है कि भारत के 4 करोड़ सफेदपोश पेशेवर, जो अपने खर्च से लगभग 20 करोड़ नौकरियों का सृजन करते हैं, उनके यह एक खतरे की घंटी है. उन्होंने चेतावनी देते हैं कि जब तक वेतन और रोजगार सृजन में सुधार नहीं होता, भारत में मध्यम वर्ग की लंबे समय तक तंगी बनी रहेगी, जिससे उसकी आर्थिक गति (Economic Growth) पर असर पड़ सकता है.