यूपी चुनाव में सिर्फ 16 महीने शेष, सियासी दलों की बढ़ी हलचल

लखनऊ
सियासी मंचों से भले ही लोक कल्याणकारी उद्देश्यों की बातें की जाएं, सियासत की धुरी को लोगों के अच्छे और सरल जीवन यापन पर केंद्रित करने के दावे हों लेकिन फिलहाल यूपी की राजनीतिक हकीकत इससे बिलकुल इतर नज़र आ रही है। यूपी में नेताओं की ‘परीक्षा’ यानी विधानसभा चुनाव अभी 16 महीने दूर हैं लेकिन कमोबेश सभी सियासी दल खासतौर पर राजग में सहयोगी दल से लेकर खुद भाजपा के विधायक जातीय जोड़-घटाना करने में जुट गए हैं।

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव वर्ष 2027 के फरवरी-मार्च में होने हैं। ऐसे में विपक्षी दल सपा पीडीए को मजबूत करने में जुटी है। सपा जिलों-जिलों में ‘पीडीए’ सम्मेलन शुरू कर रही है। कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष हिन्दवी कहते हैं कि मंडल हो या फिर जिला स्तर पर कांग्रेस ‘संगठन सृजन’ के तहत यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि संगठन में 60 फीसदी हिस्सेदारी दलितों, मुस्लिमों और अन्य पिछड़ों की हो। प्रदेश कांग्रेस कमेटी में ओबीसी एडवाइजरी काउंसिल गठित की गई है और 14 जुलाई को भागीदारी न्याय सम्मेलन किया गया। खुद भाजपा में जातीय जोड़-घटाना जोरों पर है। प्रदेश अध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया अटकी होने के मद्देनज़र जातीय खेमे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष अपनी दावेदारी के संकेत दे रहे हैं। पहले आंवला में भाजपा के कद्दावर मंत्री धर्मपाल सिंह के जरिये लोध सम्मेलन किया गया। वहीं कुर्मियों की ओर से ‘सरदार पटेल बौद्धिक मंच’ के बैनर तले लखनऊ में सम्मेलन किया गया। इसके कर्ताधर्ता इंजीनियर अवनीश सिंह थे। उन्हें जलशक्ति मंत्री का सबसे करीबी माना जाता है।

इस सम्मेलन में अपना दल के नेता आशीष पटेल ने भी जोरशोर से शिरकत की। इसके जरिये भी सियासी संदेश देने की कोशिश की गई। इसी तर्ज पर अलीगढ़ में गुरुवार को पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की पुण्यतिथि पर ‘हिन्दू गौरव दिवस’ के रूप में श्रद्धांजलि समारोह आयोजित कर ताकत दिखाई गई। वैसे यह कार्यक्रम हर वर्ष होता रहा है लेकिन चुनावों के मद्देनज़र इसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है। दूसरी ओर अति अन्य पिछड़ी जातियों की सियासत करने वाले निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद ने भी पुरानी मांग उठाना शुरू कर दी है। ‌उन्होंने दिल्ली में ताकत दिखाकर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को संदेश देने का प्रयास किया है कि अति पिछड़ी जातियों को एससी का दर्जा देने की उनके दल की मांग पर ध्यान दिया जाए।

क्षत्रिय विधायकों में भी लामबंदी के प्रयास
क्षत्रिय विधायकों ने भी लखनऊ के एक होटल में कुटुंब सम्मेलन कर अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की। इसमें सपा से हटाए गए क्षत्रिय विधायकों अभय सिंह व राकेश सिंह ने भी शिरकत की थी। राजनीतिक विश्लेषक पूर्व आईजी अरुण कुमार गुप्ता कहते हैं-‘छोटे दलों ने यह कवायद विधानसभा चुनाव में टिकटों की दावेदारी के मद्देनज़र की है। इसे ताकत दिखाने और सत्तारूढ़ दल व विपक्ष के बीच तवज्जो मिलने की सौदेबाजी के रूप में भी देखा जा रहा है। वहीं सत्तारूढ़ दल के धड़ों की यह मशक्कत प्रदेश अध्यक्ष के पद पर चयन की दावेदारी के रूप में भी देखी जा रही है।

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button