जब 60 पागल कुत्तों को मारने पर गांधीजी ने दी थी सहमति, जानें क्या था तर्क

नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में लावारिस कुत्तों को अलग रखने का आदेश दिया है। अदालत का कहना है कि ऐसे लावारिस कुत्तों को खुलेआम गलियों, मोहल्लों और सड़कों पर घूमने नहीं दिया जा सकता, जो किसी के लिए भी खतरा बन जाएं। शीर्ष अदालत के इस आदेश को लेकर समाज में अलग-अलग राय दिख रही हैं। एक वर्ग का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला समाज हित में है। वहीं डॉग लवर्स का कहना है कि ऐसा फैसला व्यवहारिक नहीं है। समाज से कुत्तों को अलग नहीं किया जा सकता और वे मनुष्य के आदिकाल से ही साथी रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी, प्रियंका गांधी ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल किया है।

यही नहीं तमाम सिलेब्रिटीज ने भी फैसले पर प्रश्न चिह्न लगाए हैं। इस बहस के बीच दुनिया में अहिंसा के सिद्धांत को बढ़ावा देने वाले महात्मा गांधी की राय भी प्रासंगिक हो जाती है। उन्होंने एक बार 60 ऐसे कुत्तों को मारने की अनुमति दी थी, जो पागल हो गए थे। इस पर सवाल उठा तो उन्होंने विस्तार से बताया भी था कि अहिंसा की बात करने के बाद भी उन्होंने ऐसा फैसला क्यों लिया। यह वाकया 1926 का है। टेक्सटाइल कारोबारी अंबालाल साराभाई की मिल में 60 कुत्ते पागल हो गए थे। उसने लोगों को खतरा था और साराभाई ने इन्हें मारने का आदेश दिया।

इस पर लोगों ने सवाल उठाए और विवाद होने लगा तो साराभाई ने महात्मा गांधी की राय लेना उचित समझा। वह महात्मा गांधी से मिलने साबरमती आश्रम गए। उन्होंने जब पूरी स्थिति बताई और कुत्तों को मारने का अपना फैसला बताया तो महात्मा गांधी ने पूछा कि आखिर और क्या किया जा सकता है। महात्मा गांधी की इस राय पर भी सवाल उठा और लोगों ने पूछा कि आखिर अहिंसा की बात करने वाले महात्मा गांधी ने इस पर सहमति क्यों जताई। इस बारे में महात्मा गांधी ने फिर विस्तार से अपनी बात रखी थी और यंग इंडिया अखबार के माध्यम से अपने विचार व्यक्त किए थे।

क्या थी महात्मा गांधी की कम पाप और ज्यादा पाप की दलील
महात्मा गांधी ने लिखा था, 'इस बात में कोई दोराय नहीं हो सकती कि हिंदू दर्शन किसी भी जीव की हत्या को पाप मानता है। मैं समझता हूं कि सभी पंथ इस सिद्धांत पर सहमत होंगे। समस्या तब आती है, जब इसे व्यवहार में लाना होता है। हम कीटनाशकों का इस्तेमाल करके रोगाणुओं को मारते ही हैं। यह एक हिंसा है, लेकिन कर्तव्य भी है। एक पागल कुत्ते को मारना न्यूनतम हिंसा है। यदि कोई जंगल में एकांत में रहता है तो फिर वह ऐसी हिंसा नहीं करेगा और ना ही इसकी जरूरत है। लेकिन यदि कोई शहर में रहता है तो फिर उसके लिए अहिंसा का सिद्धांत और ड्यूटी को लेकर विरोधाभास की स्थिति होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि शहर में रहने वाले व्यक्ति को खुद को और उन लोगों की भी रक्षा करनी हैं, जो उस पर निर्भर हैं। यदि वह कुत्ते को मारता है तो पाप होगा और यदि नहीं मारता है तो उससे भी बड़ा पाप करेगा। इसलिए वह कम पाप को चुनेगा ताकि बड़े पाप से बच सके।'

लावारिस कुत्तों पर समाज को क्या दी थी नसीहत
इसके अलावा महात्मा गांधी ने लावारिस कुत्तों को लेकर समाज को भी सलाह दी थी। उनका कहना था कि कोई सभ्यता कितनी दयावान है, यह इससे पता चलता है कि उसके बीच पल रहे जानवरों की क्या स्थिति है। यदि कुत्ते आवारा घूम रहे हैं तो इससे पता चलता है कि समाज में प्राणी मात्र के प्रति दया का भाव नहीं है। उन्होंने लिखा था, ‘कुत्ता एक वफ़ादार साथी है। कुत्तों और घोड़ों की वफ़ादारी के अनेक उदाहरण हैं। इसका मतलब यह है कि हमें उन्हें रखना चाहिए और उनका उसी तरह सम्मान करना चाहिए जैसे हम अपने साथियों का करते हैं और उन्हें यूं ही घूमने नहीं देना चाहिए।’

कहा था- कुत्तों का लावारिस घूमना समाज के लिए शर्म का विषय
लावारिस कुत्तों को सड़कों पर रखने को शर्मनाक बताते हुए गांधीजी ने कहा था कि एक मानवीय व्यक्ति को अपनी आय का एक हिस्सा अलग रखना चाहिए और उसे किसी ऐसे संगठन को देना चाहिए जो कुत्तों की देखभाल करता हो। गांधीजी ने कहा था- 'यदि वह ऐसा नहीं कर सकता, तो उसे कुत्तों के प्रश्न पर चिंता छोड़ देनी चाहिए और अपनी मानवता को अन्य पशुओं की सेवा में लगाना चाहिए।'

 

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